बद्चलन
हाँ ! वो लड़कों से बातें करती है
वो किसी से नही डरती है
बिना सोचे , बिना डरे समाज से लड़ लेती है
हर जुल्म , हर सितम हसते - हसते सह लेती है
लाख तोड़ा हो तुमने उसे -२
वो फिर से जुड़ लेती है
हाँ !वो लड़की बड़ी बद्चलन है -२
जो तुम्हारे बनाए हुए रिवाजों पर नहीं चलती है
जो तुम्हारे बनाए हुए रिवाजों पर नहीं चलती है
एक औरत की चेष्टा
टूटी दीवारों पर झूलती छत के उस मकान
के बाहर बिखरी ईटों को समेटती देखी
है मैंने " एक औरत "
पैबंद लगे अपने छोटे से आँचल में परिवार को समेटती ,
तो कभी , फैली धूप को टूटी झाडू से बुहारती
कभी टूटी छत पर पड़ती अम्ल वर्षा को झेलती
देखी है मैंने "एक औरत "
घर में जहाँ -तहाँ लगी कालिख बदनुमा
धब्बों को खुरचती ,तो कभी , ढकती
देखी है मैंने "एक औरत "
कोई समय ,कोई काल ,कोई युग हो
मगर हर परिवेश में कुछ इसी चेष्टा में
लगी देखी है मैंने "एक औरत "
'जो तुम्हारे बनाए हुए रिवाजों पर नहीं चलती है ' bahut sahi likha hai.
ReplyDeleteदेखी है मैंने "एक औरत "sundar abhivyakti.